यहाँ जन्मे थे देश के पहले राष्ट्रपति, घर के अंदर महात्मा गाँधी को भी नहीं जाने दिया गया था, जानिए वजह
राजधानी पटना से लगभग 90 KM दूर है सीवान। यहां से हम लगभग 10 KM पश्चिम की तरफ एक छोटे से गांव जीरादेई पहुंचे। इसी जीरादेई गांव में 3 दिसंबर 1884 में जन्म हुआ था देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का। ये वो वक्त था जब देश गुलाम था और इस मुश्किल घड़ी में राजेंद्र प्रसाद ने उच्च पढ़ाई भी की और देश के सबसे सर्वोच्च पद यानी देश के राष्ट्रपति भी बने। राजेंद्र प्रसाद आजाद भारत के दो बार के राष्ट्रपति थे।

आज भी राजेंद्र प्रसाद के उस घर को उसी तरह से सहेज पर रखा गया है। हालांकि अब बिहार सरकार के पुरातत्वविक विभाग ने अपने संरक्षण में इस पूरे कैंपस को ले लिया है। अब उस उस कमरे को भी संरक्षित किया गया है, जहां डॉ. राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति बनने के बाद आकर रुकते थे।

राजेंद्र प्रसाद के घर बिना बताए चले आए थे महात्मा गांधी
राजेंद्र प्रसाद के बचे हुए घर और जायदाद के केयर टेकर रामेश्वर सिंह से हमारी मुलाकात हुई। वो एक वाकया याद करते हुए बताते हैं कि एक बार महात्मा गांधी जीरादेई राजेंद्र प्रसाद के घर बिना बताए चले आए थे, तब राजेंद्र बाबू घर पर नहीं थे। 16 जनवरी 1927 से 18 जनवरी 1927 तक महात्मा गांधी राजेंद्र प्रसाद के आवास पर ही रुके।

तब महात्मा गांधी को राजेंद्र प्रसाद के घर के बरामदे में ठहराया गया था। पहले के वक्त में गेस्ट को घर के अंदर नहीं ले जाया जाता था। साथ ही महात्मा गांधी ने बरामदे में ही रहने की इच्छा जाहिर की थी। वो कुआं आज भी उसी तरह से है, जहां महात्मा गांधी नहाते थे। अब उसे ढंक दिया गया है। आज उस बरामदे में महात्मा गांधी की चारपायी और बिछावन को संरक्षित रखा गया है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की शुरुआती पढ़ाई जीरादेई में हुई
रामेश्वर सिंह ने उस कमरे को दिखाया जहां उनका जन्म हुआ था साथ ही उस आंगन को भी दिखाया जिसमें वो खेलते थे। आज भी वो आंगन काफी खूबसूरत लगता है। जिस आंगन में राजेंद्र प्रसाद खेलते थे, उसमें तुलसी का पौधा भी है।
रामेश्वर सिंह बताते हैं कि किस तरह से राजेंद्र बाबू यहां पले-पढ़े और फिर आजाद भारत के राष्ट्रपति बने। वो बताते हैं कि राजेंद्र प्रसाद का परिवार संपन्न परिवार था लेकिन, यहां गांव की व्यवस्था उनके बड़े भाई महेंद्र सिंह देखते थे।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद की शुरुआती पढ़ाई तो जीरादेई में हुई थी। जहां उन्होंने उर्दू-फारसी की तालिम ली थी। राजेंद्र प्रसाद के बारे बताया जाता है कि जब वो छोटे थे और उन्हें शिक्षक पढ़ाने आते थे और वो दीये में जब तक तेल रहता था तब तक पढ़ाते थे।
सभी परीक्षाओं में प्राप्त किया प्रथम स्थान
लेकिन, राजेंद्र प्रसाद ने उस दीये के तल में बालू भर देते थे और दीया जल्द बुझ जाता था और राजेंद्र प्रसाद ज्यादा पढ़ने से बच जाते थे। शुरुआती पढ़ाई के बाद राजेंद्र प्रसाद कलकता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज से MA और LLB की परीक्षाएं पास की। वे बड़े मेधावी छात्र थे। सभी परीक्षाओं में उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया।
चंपारण आंदोलन के दौरान राजेन्द्र प्रसाद गांधी जी के वफादार साथी बन गए थे। गांधी जी के प्रभाव में आने के बाद स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया। 1931 में कांग्रेस ने आन्दोलन छेड़ दिया था। इस दौरान डॉ. प्रसाद को कई बार जेल जाना पड़ा।

1934 में उनको बम्बई कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था। वे एक से अधिक बार अध्यक्ष बनाए गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में इन्होंने भाग लिया, जिस दौरान वे गिरफ्तार हुए और उनको नजर बंद रखा गया।
उनकी गिनती प्रथम श्रेणी के वकीलों में
पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मुजफ्फरपुर के एक एलएस कॉलेज में कुछ दिनों तक अध्यापन कार्य किया। उन्होंने 1911 में कलकता हाईकोर्ट में वकालत प्रारंभ कर दी। पटना हाईकोर्ट स्थापित होने पर 1916 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद यहां आ गए। कुछ ही दिनों में उनकी गिनती प्रथम श्रेणी के वकीलों में होने लगी।
1917 में महात्मा गांधी ने बिहार आकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया था। उसी दौरान डॉ. राजेंद्र प्रसाद, गांधी जी से मिले, उनकी विचारधारा से वे बहुत प्रभावित हुए। 1919 में पूरे भारत में सविनय आन्दोलन की लहर थी।

गांधीजी ने सभी स्कूल, सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने की अपील की। इसके बाद डॉ. प्रसाद ने अंपनी नौकरी छोड़ दी। बताया जाता है कि उस जमाने डॉ. राजेंद्र प्रसाद की वकालत की फीस काफी महंगी होती थी।
1950 से 1962 तक भारत गणराज्य के राष्ट्रपति रहे
भले ही 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, लेकिन संविधान को बनने में कुछ वक्त लगा। संविधान निर्माण में भीमराव अम्बेडकर और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने मुख्य भूमिका निभाई थी। भारतीय संविधान समिति के अध्यक्ष डॉ. प्रसाद चुने गए। संविधान पर हस्ताक्षर कर डॉ. प्रसाद ने ही इसे मान्यता दी।

जब देश स्वतंत्र हुआ तो 12 वर्ष तक सन् 1950 से 1962 तक भारत गणराज्य के राष्ट्रपति रहे। राजेन्द्र प्रसाद के व्यक्तित्व की मुख्य विशेषता यह थी कि वे राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ अजातशत्रु बने रहे और राष्ट्रपति का वैभवशाली पद प्राप्त होने पर भी सीधे-सादे ग्रामवासी रहे। राष्ट्रपति पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बहुत कम समय तक जीवित रहे। 28 फरवरी, 1963 को उनका निधन हो गया।
