3 हजार की कबाड़ बाइक को बनाया ई-बाइक, फुल चार्ज पर 80 km तक चलेगी, अब बनाएंगे ई-कार
साइंस टीचर के रूप में 30 साल पहले तक बच्चों को पढ़ाने वाले किशोर सिंह ने अपने तीसरे प्रयास में कबाड़ की बाइक को मॉडिफाई कर बैट्री वाली बाइक बना दिया। आज शहर की सड़कों पर वे अपनी इस बाइक के साथ घूमते हैं। उन्होंने 3 हजार रुपए में कबाड़ से खरीदी बाइक को 40 हजार रुपए खर्च कर ई-बाइक बना दिया। अब उनका अगला लक्ष्य ई-कार निर्माण करने का है।
किशोर की मानें तो उन्होंने 3 हजार में यामाहा की एक कबाड़ बाइक खरीदी थी। फिर उसे नया लूक दिया। सुरक्षा मापदंड को ध्यान में रखते हुए अगला पहिया मोटरयुक्त बनाया। इसके बाद 32 हजार की लिथियम बैट्री खरीदी। इस तरह से इस बाइक पर उन्होंने कुल 40 हजार रुपए खर्च किया। एक बार इसे फुल चार्ज करने पर यह 70KM तक चलती है। वैसे इस ई-बाइक की स्पीड 50KM/h है और हाइवे पर इसकी अधिकतम स्पीड 80KM/h तक जाती है। बाइक चलाने पर बैट्री गिर ना जाए, इसके लिए उसके बाहर से स्टील का बॉक्स बनाया गया है।

आइडिया बताने पर दोस्त उड़ाते थे मजाक अब करते हैं तारीफ
बच्चों को पढ़ाने का काम छोड़ने के बाद किशोर सिंह ने शहर के मेन मार्केट में इलेक्ट्रॉनिक की दुकान शुरू की। वे कहते हैं कि ई-बाइक बनाने का आइडिया 3 महीने पहले उन्होंने अपने मित्रों के साथ साझा किया था। उस वक्त दोस्तों ने उनका मजाक उड़ाया था। लेकिन वे अपने काम में डटे रहे।
वे बताते हैं कि दुकान शुरू करने के बाद भी वे हमेशा इनोवेशन पर ध्यान देते थे। उन्होंने 10 साल पहले बेल्ट वाली बाइक बनाई थी। लेकिन सफल नहीं रहे। फिर चेन वाली बाइक बनाई। उसमें कुछ तकनीकी समस्या आ गई।

लेकिन इस बार उन्होंने पूरी तैयारी की थी। इसके लिए कुछ सामान ऑनलाइन और कुछ सामान दिल्ली से खरीदा। वे कहते हैं कि आने वाला समय ई-बाइक का है। अगर इसपर लगातार शोध हो तो महंगा पेट्रोल खरीदने से छुटकारा मिल सकता है।
काफी फायदेमंद हो सकता है कबाड़
किशोर सिंह कहते हैं कि कबाड़ वाली बाइक और कार पर इस मामले में काफी काम किया जा सकता है। पुरानी गाड़ी बड़ी संख्या में कबाड़ हो रही है। ऐसे में लोग इसे औने-पौने दाम पर बेच रहे हैं।

कई बार तो देखा गया कि यूं ही लोग इसे घरों में फेंक देते हैं। ऐसे में अगर इस पर काम हो, तो निश्चित रूप से कबाड़ हम लोगों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। वे कहते हैं कि मधेपुरा इंजीनियरिंग व पॉलिटेक्निक कॉलेज में इसपर विशेष रूप से अनुसंधान होना चाहिए।