बिहार के इस गांव में नशेड़ी दूल्हे की नो एंट्री, दशकों पुरानी है परंपरा

बिहार के इस गांव में नशेड़ी दूल्हे की नो एंट्री
बिहार के इस गांव में नशेड़ी दूल्हे की नो एंट्री

बिहार में आज के दौर में बहुत कम ऐसे लोग हैं जो नशा या मांसाहार का सेवन नहीं करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं बिहार के वैशाली जिला मुख्यालय से करीब 30 km दूर कुशवाहा टोला नाम का एक ऐसा गांव हैं, जहां कोई भी नशा का सेवन नहीं करता है। चलिए जानते हैं इस गांव की परम्परा को।

नशेड़ी के अलावे इस गांव में कोई मांसाहारी भी नहीं है। इस गांव के लोग अपने बच्चों की शादी भी ऐसे ही सात्विक विचार वाले परिवार में ही करते हैं। इस गांव की दुकानों में भी आपको नशे का कोई सामान नहीं मिलेगा।

दशकों से चली आ रही है परंपरा 

व्यवसायिक दृष्टिकोण से भी लोग मुर्गी, बकरी या मछली पालन नहीं करते हैं। सब्जी और फलों की खेती जमकर करते हैं। चिंतामणिपुर पंचायत के सरपंच पति ब्रह्मदेव भगत ने बताया कि हमलोग कुशवाहा जाति के हैं। यह परंपरा दशकों से चली आ रही है।

हमारे गांव की आबादी 500 से अधिक है। इस गांव के लोग अपने बेटे और बेटी की शादी ऐसे परिवार में नहीं करते हैं, जो लोग मीट, मछली, गुटका, पान, सिगरेट आदि का सेवन करते हैं।

शादी से पहले रखी जाती है शर्त

शादी की पहली शर्त रही रहती है की मीट, मछली, गुटका, पान, सिगरेट आदि का सेवन करने वाला परिवार नहीं चाहिए। इसके अलावा वे लोग अपने स्तर से भी पता लगाते रहते हैं।

कुशवाहा टोला गांव के रहने वाले प्रेमचंद भगत बताते हैं कि हमारे गांव में कोई भी व्यक्ति नशा नहीं करता है। मीट-मछली से भी कोई नाता नहीं है। यह परंपरा कई पीढ़ियों से चले आ रही है।

पान-गुटका, शराब सेवन करने वालों से नहीं करते दोस्ती

वे बताते हैं कि हमलोग अपने बच्चों की शादी करते समय ऐसा परिवार खोजते हैं, जिसमें कोई नशा नहीं करता हो। तस्सली होने के बाद ही रिश्ता जोड़ा जाता है।

युवा अनिल कुशवाहा बताते हैं कि हमारे गांव के लोग कभी भी शराब नहीं पीते हैं और न ही पान-गुटका खाते हैं। युवा पीढ़ी इस परंपरा का पालन कर रहे हैं। यही नहीं, हमलोग जिस किसी से दोस्ती करते हैं, उसमें भी यह गुण देखा जाता है।

 

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