70 percent of the total production of makhana in the country is in Kosi Seemanchal of Bihar

देश के कुल मखाना का 70% उत्पादन बिहार के कोसी सीमांचल में, विदेशों में बढ़ी मांग

बिहार के कोसी-सीमांचल में मखाने की लगातार खेती हो रही है। पूर्णिया के भोला पासवान शास्त्री कृषि कालेज में मखाना रिसर्च सेंटर स्थापित होने के बाद किसानों के लिए मखाना उत्पादन और लाभकारी हो गया है। नये प्रभेद सबौर मखाना-वन की खोज के बाद किसान साल में दो बार मखाना का उत्पादन करने लगे हैं। किसानों का रुझान भी इसकी खेती की ओर बढ़ रहा है। यहां के मखाने की गुणवत्ता बेहतर होती है। इस कारण देश-विदेश में इसकी मांग बढ़ रही है।

भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय के प्राचार्य पारसनाथ कहते हैं कि पूर्णिया सहित सीमांचल का क्षेत्र मखाने की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। यहां काफी मात्रा में लो-लैंड है। ऐसी जमीन पर मखाने की खेती की काफी संभावना होती है। कालेज के रिसर्च सेंटर में मखाने की खेती के लिए नई-नई तकनीकों का आविष्कार किया जा रहा है।

The area of Seemanchal including Purnia is quite suitable for Makhana cultivation.
पूर्णिया सहित सीमांचल का क्षेत्र मखाने की खेती के लिए काफी उपयुक्त

किसान इसका लाभ भी ले रहे हैं। बिहार सरकार के उद्यान निदेशालय के अंतर्गत भी कृषि कालेज में मखाना विकास योजना पर काम किया जा रहा है। भारत सरकार बायोटेक किसान हब परियोजना में तीन आकांक्षी जिले पूर्णिया, अररिया और कटिहार को शामिल किया गया हैं।

35 हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन पर होती है खेती

मखाना विशेषज्ञ प्रो डा. अनिल कुमार बताते हैं कि बिहार के 10 जिलों पूर्णिया, कटिहार, अररिया, सहरसा, किशनगंज, सुपौल, मधेपुरा, दरभंगा, मधुबनी व सीतामढ़ी में 35 हजार हेक्टेयर में मखाने की खेती हो रही है।

इन जिलों में करीब 800 करोड़ सलाना से अधिक का मखाने का कारोबार होता है। विश्व में कुल मखाना का 85 प्रतिशत उत्पादन बिहार के इन 10 जिलों में हो रहा है। सिर्फ पूर्णिया में करीब 10 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है।

Makhana is being cultivated in 35 thousand hectares
35 हजार हेक्टेयर में मखाने की खेती हो रही

पूर्णिया, कटिहार, अररिया, सहरसा, किशनगंज, सुपौल, मधेपुरा में वैटलैंड एरिया में मखाना की खेती हो रही है, जबकि दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी में तालाब में मखाना की होती है।

ट्रेडिशनल खेती की जगह तकनीक का उपयोग जरूरी

भोला पासवान शास्त्री कृषि कालेज के प्राचार्य पारसनाथ कहते हैं कि मखाने के अच्छे उत्पादन के लिए किसानों को पारंपरिक खेती की जगह तकनीक को अपनाना होगा। वे बताते हैं कि अधिसंख्य किसान नदी-तालाब में लगे मखाने की फसल निकालने के बाद शेष अपशिष्ट को नदी में छोड़ देते हैं और उसमें पड़े बीज से पौधे निकलने का इंतजार करते हैं।

For good production of Makhana, farmers will have to adopt technology instead of traditional farming.
मखाने के अच्छे उत्पादन के लिए किसानों को पारंपरिक खेती की जगह तकनीक को अपनाना होगा

पूर्णिया कृषि कालेज द्वारा मखाना सबौर वन प्रभेद बीज का उत्पादन किया गया है। यह किसानों की आय को दोगुना कर सकता है। इसके अलावा दरभंगा मखाना अनुसंधान केंद्र में विकसित स्वर्ण वैदेही दूसरी प्रजाति है, जिसका उपयोग कर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं।

नहीं लग पाई है प्रोसेसिंग यूनिट

कोसी-पूर्णिया में मखाने का सर्वाधिक उत्पादन होने के बाद भी यहां अभी तक प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना नहीं की जा सकी है। इस कारण किसानों को मखाना औने-पौने दाम पर बिचौलियों को बेचना पड़ता है। हालांकि, भोला पासवान शास्त्री कृषि महाविद्यालय द्वारा यहां इन्क्यूबेशन सेंटर खोलने के लिए प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है।

Makhana is being cultivated continuously in Kosi-seemanchal of Bihar.
बिहार के कोसी-सीमांचल में मखाने की लगातार खेती हो रही है

इससे युवा वर्ग मखाना आधारित इंडस्ट्री लगाने की ओर अग्रसर होगा। अभी यहां से मखाना बोरी या पैकेट में भेजा जाता है। यूनिट लगने के बाद इसकी बेहतर पैकिंग व ब्रांडिंग हो सकेगी। इससे मखाना आधारित बाकी उत्पाद भी बनाए जा सकते हैं। यहां मखाना के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र खोलने की मांग भी उठने लगी है।

देश-विदेश में पहचान बना रहा मखाना

बिहार के दरभंगा के अलावा अब पूर्णिया का मखाना भी देश-विदेश में पहचान बना रहा है। पूर्णिया के दो युवा उद्यमियों मनीष मेहता और सुमित मेहता ने विदेश की अपनी नौकरी छोड़कर भारत सरकार के स्टार्टअप और एमएसएमई योजना के तहत मखाने का व्यवसाय शुरू किया था।

Makhana is making a mark in the country and abroad
देश-विदेश में पहचान बना रहा मखाना

आज ये दोनों फार्म टू फैक्ट्री नाम से मखाना प्रोसेसिंग, मैन्यूफेक्चरिंग और मार्केटिंग में 50 से अधिक लोगों को रोजगार दे रहे हैं। इनका मखाना एक छोटे से गांव रहुआ से अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया समेत कई देशों में पहुंच रहा है। मनीष मेहता किसानों का समूह बनाकर मूल्य संवर्धन आधारित मखाना उद्योग लगा कर अपने उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला रहे हैं।

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