पान खिलाओ दुल्हनिया ले जाओ: बिहार के इस मेले में लड़की पान खा ले तो रिश्ता मंजूर
भारतीय संस्कृति में युवतियों द्वारा मनपसंद जीवनसाथी ढूंढ़ने की परंपरा प्राचीन काल से ही रही है। इसके लिए स्वयंवर कराए जाते थे, जिसमें युवती अपने पसंद के वर का चयन करती थीं। कई ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों में इस तरह के स्वयंवरों का उल्लेख मिलता है। समय के साथ समाज में बदलाव आया, जिसने आमलोगों के जीने के तरीके को भी बदला। लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि भारतीय समाज में अभी भी इस तरह की प्रथाएं अलग रूप में जिंदा हैं, जहां युवक-युवती अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनते हैं।
बिहार के पूर्णिया जिले में ऐसी ही एक परंपरा की झलक मिलती है। यहां हर साल एक मेला लगता है, जो पत्ता मेला के नाम से जाना जाता है, यहां जिसमें लड़कियां अपनी पसंद का वर चुनती हैं। जहां लड़का लड़की को पान ऑफर करता है, अगर वो उस पान को खा लेती है तो रिश्ता पक्का समझा जाता है। स्वयंवर की ये परंपरा आदिवासी समाज में आज भी जिंदा है। यहां के आदिवासियों में अलग अंदाज में शादी होती है।
मेले में नाच-गाना होता है। लड़का और लड़की एक दूसरे को पंसद करते हैं। इसके बाद दोनों के हाथों में पान दिया जाता है। लड़के की ओर से दिया हुआ पान लड़की को खाना होता है। अगर लड़की ने पान खा लिया तो शादी पक्की हो जाती है। पान खाना शादी के लिए इजाजत देने के बराबर है।
स्वयंवर की अनूठी परंपरा
स्वयंवर की यह अनूठी परंपरा मिलिनिया गांव के आदिवासियों में है। यहां हर साल बैसाखी और सिरवा-विषवा पर्व बडे़ ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें दो दिन तक मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में बिहार, झारखंड, बंगाल, ओडिशा व नेपाल से भारी संख्या में आदिवासी हिस्सा लेते हैं।
कुंवारे लड़के-लड़की ज्यादातर संख्या में आते हैं। यहां दोनों अपना जीवनसाथी चुनते हैं। स्थानीय अनिल उरांव ने बताया कि यह आदिवासियों का काफी प्राचीन परंपरा है। पान खाने के बाद लड़की लड़का के घर चली जाती है। दोनों साथ रहने लगते हैं। कुछ दिनों बाद दोनों की शादी होती है।
परंपरा में कई कानून भी
इस परंपरा में कड़े कानून भी हैं। पान खाने और एक दूसरे के साथ रहने के बाद दोनों शादी करने के लिए बाध्य है। यदि किसी ने शादी करने से इंकार कर दिया तो वैसे जोड़े को आदिवासी समाज दंडित करता है। उन्हें गांव से निकाल भी दिया जाता है।
मेले में 130 जोड़ी ने खिलाए पान
इस साल सिरुवा मेले में 130 जोड़ी ने एक-दूसरे को पसंद किया। लड़कियों ने पान खाकर जीवनसाथी को चुना। दो दिन तक चलने वाले इस मेले में 130 युगल जोड़ी की शादी निश्चित मानी जा रही है। मेले की दूसरी खासियत यह है कि यहां आए लोग एक दूसरे को कीचड़ और अबीर-गुलाल लगाकर बधाई देते हैं। पूरे पर्व को होली जैसा मनाते हैं।
बांस के खास टावर पर विशेष पूजा
इस मेले में बांस का एक खास टावर लगाया जाता है। उस टावर पर चढ़कर खास तरह की पूजा होती है। इसके अलावा इस मेला में आदिवासी युवक-युवतियां ढोल-नगाड़े की धुन पर नृत्य करते हैं। एक-दूसरे पर धूल-मिट्टी डालकर जमकर खुशियां मनाते हैं। इस मेले में भाग लेने नेपाल तक से लोग आते हैं।