बिहार के गया में है सबसे बड़ी पाक कुरान, दीदार के लिए आते है दुनिया भर से लोग, जाने खासियत
वैसे तो बिहार का गया शहर हिंदू और बुद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थस्थानों के रूप में जाना जाता है। मगर यह मुस्लिमों के लिए भी एक प्रमुख केंद्र है। शहर के रामसागर रोड स्थित खानकाह मुनामिया में 1152 पन्नों वाली कुरान है। यह इस्लाम की अमूल्य और दुर्लभ धरोहर है, जिसका दीदार करने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं।
इसके साथ ही कई रिसर्च स्कॉलर और प्रोफेसर यहां आकर अध्ययन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि 1793 तक देहलवी परिवार ने कुरान शरीफ का अरबी से फारसी और उर्दू में अनुवाद कियाथा। साल 1882 में पहली बार कुरान-ए-पाक को बड़े साइज में प्रिंट किया गया था, जो कि अब धरोहर बन गया है।
![1152-page Quran in Khanqah Munamiya, Ramsagar Road, Gaya](https://ararianews.com/wp-content/uploads/2022/06/1152-page-Quran-in-Khanqah-Munamiya-Ramsagar-Road-Gaya.png)
1882 में कराया गया प्रिंट
घर-घर पाक कुरान की पहुंच हो। इसे आसानी से लोग पढ़ सकें। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर करीब डेढ़ सौ साल पहले 1882 में इस्लामिक पवित्र ग्रंथ कुरान का बड़े साइज में प्रिंट कराया गया। अरबी से फारसी और उर्दू में कुरान प्रकाशित हुई। लेकिन, समय के साथ प्रिंट हुईं कुरान की प्रतियां विलुप्त होती गईं।
![In 1882 the Islamic holy book Quran was printed in large size.](https://ararianews.com/wp-content/uploads/2022/06/In-1882-the-Islamic-holy-book-Quran-was-printed-in-large-size..png)
मुस्लिम स्कॉलरों ने बड़ी शिद्दत से इस दुलर्भ कुरान की खोज की तो बस तीन प्रतियां ही मिलीं। इनमें से दो भारत और एक लंदन में है। भारत में मौजूद दो में एक पाक कुरान गया की धरोहर बनी है। शहर के रामसागर रोड स्थित खानकाह चिश्तिया मुनामिया में 1152 पन्नों वाली कुरान एक विरासत के रूप में मौजूद है।
इसके अलावा यहां भी है सबसे बड़ी कुरान
खानकाह मुनामिया के नाजिम अता फैसल ने बताया कि आज की तारीख में 54 सेमी लंबी और 35 सेमी चौड़ी कुरान पूरी दुनिया में सिर्फ तीन जगह ही है। गया के खानकाह के अलावा लंदन की ब्रिटिश लाइब्रेरी और अलीगढ़ के मौलाना आजाद लाइब्रेरी में मौजूद है।
![Here is also the biggest Quran](https://ararianews.com/wp-content/uploads/2022/06/Here-is-also-the-biggest-Quran.png)
यह 1152 पन्ने का है। 30 पैरा वाले दुलर्भ कुरान की दो वॉल्यूम है। इसकी प्रिंटिंग दिल्ली के मयूर प्रेस में 1882 में करायी गई थी। सामान्य कुरान इससे काफी छोटी और करीब 600 पन्नों की होती है।
उर्दू-फ़ारसी में हैं कुरान की व्याख्या
गया में मौजूद इस कुरान की खास बात यह है कि इसके आयत (श्लोक) अरबी में हैं। 1793 तक दिल्ली के वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी के पुत्र शाह अब्दुल अजीज मुहद्दिस और शाह रफी उद्दीन मुहद्दिस देहलवी ने कुरान के आयत को अरबी से फारसी और उर्दू में उतारा था। अनुवाद के साथ-साथ आयत की व्याख्या भी की गई।
इसके बाद प्रिंट से पहले लंबे समय तक 10 विद्वानों की टीम ने कुरान की प्रूफ रीडिंग की। फिर मयूर प्रेस ने सभी को संग्रहित कर बड़ी किताब के रूप में 1882 में इसे प्रकाशित किया। नाजिम अता फैसल ने बताया कि पूर्वजों की विरासत दुर्लभ कुरान खानकाह की अमूल्य धरोहर और शान है।
‘मदीना से है इसका जुड़ाव’
खानकाह के नाजिम अता फैसल बताते हैं कि खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है। मदीना से इसका जुड़ाव है। लगभग दो-ढाई सौ साल पुराना ये खानकाह है। उन्होंने बताया कि गया में सबसे पहले हजरत सैयद शाह आत फानी आये थे।
वो बताते हैं कि व्याख्यान खाने से धरोहर के रूप में रखा गया है। कोई शब्द का मतलब ढूंढना हो या कोई नई बातें जाननी हो तो इस कुरान से ढूंढ कर बताई जाती है। त्योहारों में पवित्र कुरान को लोगों के बीच दर्शन के लिए रखा जाता है।