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मिलिए बिहार की ट्री वीमेन से, पेड़ पौधों को मानती है अपनी संतान, 20 साल से जंगल बचा रही

महिला दिवस के मौके पर हमने तमाम सशक्त महिलाओं की कहानी सुनी और पढ़ी होगी। नारी शक्ति के गुणगान में कई जगहों पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। ऐसे में बिहार के जमुई की उस महिला का जिक्र करना बेहद जरूरी है। जिन्होंने अपना जीवन प्रकृति की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया है।

वह बीते दो दशक से भी अधिक समय से पर्यावरण संरक्षण (Environment protection) और वन्य जीव को बचाने के लिए बिहार के नक्सल प्रभावित इलाके में संघर्ष करती आ रही हैं। यह महिला जंगल में ही नहीं, कहीं भी लगे पेड़ को अपने संतान की तरह मानती हैं। उन्हें पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है।

Chinta Devi with female members
महिला सदस्यों के साथ चिंता देवी

पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीव को बचाने का करती है काम

जमुई जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र (naxal affected areas) खैरा प्रखंड के मंझियानी गांव की 52 वर्षीय चिंता देवी बीते दो दशक से भी अधिक समय से पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीव को बचाने के लिए काम करती आ रही हैं।

चिंता देवी को लोग ट्री वीमेन (Tree Women) के नाम से भी जानते हैं। चिंता देवी साल 2000 से ही जंगल में लगे पेड़ को बचाने के लिए काम करते आ रहीं हैं। पेड़-पौधों को बचाने के लिए उनका साथ इलाके की लगभग 20 महिलाएं भी देती हैं।

Chinta Devi works to protect the environment and save wildlife
चिंता देवी पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीव को बचाने का करती है काम

चिंता देवी के नेतृत्व में महिला गश्ती दल बना है, जो हाथ में डंडा लेकर और मुंह से सिटी बजाकर इलाके के जंगल को बचाने (save the forest) का काम करती हैं।

पेड़ पौधों को मानती हैं अपनी संतान

चिंता देवी के रहते इलाके के किसी भी जंगल से कोई पेड़ काट नहीं सकता, यहां तक कि कई बार जंगल से भटके जंगली जानवर अगर गांव में आ जाते हैं तो उसे सुरक्षित फिर जंगल में छोड़ने में वन विभाग का सहयोग करती हैं।

Chinta Devi considers trees and plants as her children
चिंता देवी पेड़ पौधों को मानती हैं अपनी संतान

पढ़ाई- लिखाई के नाम पर मात्र हस्ताक्षर करने वाली चिंता देवी का पेड़ पौधों से गजब का लगाव है। चिंता देवी का यह कहना है कि उनके परिवारवालों ने भी इस काम को करने से कभी नहीं रोका। पेड़ पौधों को बचाने के जुनून के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि जंगल या फिर कहीं के पेड़ पौधों को वह अपनी संतान मानती हैं।

अब कोई मां चाहेगी कि उसकी संतान को परेशानी हो, उसे कोई नुकसान पहुंचाए, यही वजह है कि वे जंगल में लगे पेड़ को बचाने के लिए काम कर रही हैं।

कई बार आरोपियों की पिटाई भी

यही नहीं चिंता देवी की टीम समय समय पर खनन माफिया से भी लोहा लती हैं। कई बार तो उन्होंने अपनी टीम के साथ मिल कर उन्हें भगाया भी है। अपराधियों को पकड़ने के बाद वे वन विभाग के अधिकारी को सूचित करती हैं।

चिंता देवी की टीम गुरिल्ला रणनीति पर काम करती है। जंगल में इधर-उधर छिपकर कड़ी नजर रखी जाती है। अवैध काम पर शक होते ही सीटी बजा कर सभी महिलाओं को एक जगह इकट्ठा लिया जाता है। कई बार तो नहीं मानने पर आरोपियों की पिटाई भी की जाती है।

9 लाख पौधा लगाने का श्रेय

जंगल और पर्यावरण को बचाने के लिए चिंता देवी ने करीब 9 लाख पौधे लगवाए हैं। उन्होंने बताया, ‘2001 में प्रकृति को बचाने के लिए इस काम से जुड़ी थी। कोलकाता में इस तरह की टोली बनाकर पर्यावरण बचाने का काम करते देखा था। वहीं से मुझे प्रेरणा मिली। इसके बाद से ही इस काम में लगी हुई हूं। पेड़ पौधों को अपने बच्चों की तरह मानती हूं। उसका लालन-पालन करती हूं।’

कई संस्थाओं ने सम्मानित किया है

जंगल बचाने के इस अभियान से चिंता देवी को पर्यावरण बचाव के क्षेत्र में कई अवार्ड भी मिला है। सरकारी संस्थाओं और दर्जनों एनजीओ की ओर से प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है। चिंता देवी का नाम अब पर्यावरणविद के तौर पर भी लिया जाता है।

Chinta Devi has been honored by many organizations
चिंता देवी को कई संस्थाओं ने सम्मानित किया है

जमुई से निकलकर उनकी पहचान अब राष्ट्रीय स्तर पर हो गई है। जंगल बचाने को लेकर कई सेमिनार में भी चिंता देवी को अब बुलाया जाता है। वह जंगल को बचाने के लिए उस इलाके में और भी कई लोगों को जागरूक करती हैं। वह वन विभाग द्वारा लगाए गए पौधशाला की देखभाल का भी काम कर रही हैं, निश्चित तौर पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए गए उनके कार्य सराहनीय है।

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