बिहार के सीमांचल की जैविक मछलियां इन दिनों सुर्ख़ियों में, महानगरों में बढ़ी डिमांड
जल्द ही जैविक मखाना के बाद अब सीमांचल की जैविक मछली भी महानगरों में जाएगी। जैविक मछली की पहली खेप जल्द ही यहां निकलने वाली है। पूर्णिया प्रमंडल के अररिया जिला स्थित भरगामा प्रखंड के पैकपार निवासी किसान प्रभात कुमार सिंह मुन्ना ने इसका उत्पादन शुरू किया है।
उनके इस प्रयोग को देखने के लिए दिल्ली व पटना से भी विभागीय टीम पहुंच चुकी है और अब उन्हीं के तालाब के करीब राज्य सरकार की ओर से मत्स्य पालन प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण भी किया जा रहा है।
तमिलनाडु और बांग्लादेश में जा के ले चुके हैं प्रशिक्षण
किसान प्रभात कुमार सिंह मुन्ना जैविक मछली उत्पादन का यह प्रयोग शुरु करने से पहले तमिलनाडु के साथ-साथ बांग्लादेश में भी जा के प्रशिक्षण ले चुके हैं। लगभग 26 एकड़ के तालाब में मछली उत्पादन व मछली बीज उत्पादन कर रहे हैं।
खल्ली और अनाज के सहारे कर रहे है मछली पालन
किसान प्रभात सिंह के अनुसार अमेरिकन रेहू व कतला समेत कई अन्य वेरायटी के मछली का उत्पादन वे जैविक विधि से कर रहे हैं। इन मछलियों को सरसों की खल्ली के साथ-साथ उबाला हुआ मक्का, गेहूं व धान आदि भोजन के रुप में दिया जाता है।
इसमें यूरिया अथवा फास्फेट आदि का उपयोग नहीं किया जाता है। उन्होंने जानकरी दी कि केमिकल उपयोग वाले मछली के विपरीत जैविक विधि पालन में मछली के ग्रोथ में मामूली सा अंतर रहता है। सामान्य पालन में जहां एक साल में मछली तैयार हो जाती है, वहीं जैविक विधि में 13 से 14 माह का समय लगता है।
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महानगरों में मिलती है ज्यादा कीमत
किसान प्रभात सिंह मुन्ना के अनुसार जैविक विधि से उत्पादित मछली की डिमांड विशेषकर दिल्ली, कोलकाता, पटना के साथ-साथ अन्य नगरों व महानगरों में ही विशेष रुप से होती है। इस तरह की मछली की कीमत आम मछली से कुछ ज्यादा मिलती है। स्वास्थ्य के लिए भी यह सर्वोत्तम मानी जाती है। जिसके लिए व्यापारी खुद यहां पहुंचने लगे हैं।
बन चुका है बीज उत्पादन का बड़ा केंद्र
पैकपार अब विभिन्न मछलियों के बीज उत्पादन का भी बड़ा केंद्र बन चुका है। किसान प्रभात सिंह मुन्ना ने गत 2 साल से बीज उत्पादन शुरु किया और अब यहां से उत्पादित बीज सहरसा, सुपौल, पूर्णिया, मधेपुरा आदि जिलों में जाने लगा है।
मछली बन चुकी है यहाँ की संस्कृति
माछ यानि मछली, मखान यानि मखाना व पान मिथिलांचल की पहचान रही है। यहां के लोग मखान व पान के साथ मछली के काफी शौकीन होते हैं। और साथ ही मछली यहां की संस्कृति का हिस्सा भी बना हुआ है। नदियों के संजाल वाले इस इलाके में मत्स्य उत्पादन जीविका का बड़ा माध्यम भी है।
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