बिहार में फणीश्वरनाथ रेणु को समर्पित है यह चाय दुकान, सजती है कवियों की महफ़िल
कथाशिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की माटी पूर्णिया में एक ग्रेजुएट चाय वाले की दुकान में साहित्य को नई संजीवनी मिल रही है। साहित्यकारों के नुक्कड़ चौपाल (चटकधाम ) के नाम पर ही यह दुकान भी है। हर सप्ताह शनिवार व रविवार की शाम यहां साहित्यकारों की अनोखी महफिल सजती है। चाय दुकानदार खुद साहित्यकार नहीं होते हुए इस महफिल के अहम भागीदार होते हैं।
चौपाल में कभी कवि गोष्ठी का दौर चलता है तो कभी अलग-अलग साहित्यकारों की नई पुस्तकों का विमोचन भी होता है। इसमें राष्ट्रीय फलक पर पहचान वाले कई नामचीन साहित्यकार शोभा बढ़ा चुके हैं। शहर के रजनी चौक स्थित राम रक्षा चौधरी की यह चाय की दुकान साहित्यिक गलियारों के लिए किसी मंदिर से कम नहीं है। यहां बैठने वाले कई साहित्यकार आज अपनी लेखनी से नई उड़ान भर रहे हैं।
अनोखा है चटकधाम टी-स्टाल का स्वरुप
चटकधाम शब्द का मूलत: पश्चिम बंगाल के गांवों में खूब प्रयोग होता है। इसका मौलिक अर्थ गप्पशाला होता है। स्थानीय साहित्यकारों ने द्वारा नुक्कड़ चौपाल को यही नाम दिया है। इसमें कोई अध्यक्ष या फिर अन्य पदाधिकारी नहीं होते हैं।
इसके मुख्य केंद्र बिंदु चाय दुकानदार राम रक्षा चौधरी हैं। इस चौपाल के नियमित सदस्य सह साहित्यकार गौरी शंकर पूर्वोत्तरी, आकाशवाणी पूर्णिया के पूर्व निदेशक सह साहित्यकार विजय नंदन प्रसाद व गोविंद कुमार ने बताया कि यह एक प्राचीन धारा का नया स्वरुप है।
साहित्यकारों की नुक्कड़ महफिल इस चौक पर तीन दशक पूर्व से जमती रही है। इसकी शुरुआत सन 1990 के करीब चौक पर ही मौजूद दिनश प्रसाद चौधरी उर्फ मामू की चाय दुकान से हुई थी।
उनके निधन के बाद से प्रवीण कुमार की चाय दुकान पर यह महफिल सजती थी। बाद में खुद अर्थशास्त्र से स्नातक राम रक्षा चौधरी ने इस कमान को संभाला और फिर सर्वसम्मति से इस चौपाल को चटकधाम का नाम दिया गया।
भरत यायावर व देवेंद्र देवेश भी चौपाल में हो चुके हैं शरीक
कथाशिल्पी रेणु के करीबी व उनकी रचनाओं पर कलम चलाते रहे राष्ट्रीय फलक के साहित्यकार भरत यायावर, साहित्य अकादमी के देवेंद्र देवेश, चंद्रकिशोर जयसवाल, चंद्रकांत राय, अरुण अभिषेक, मदन मोहन मर्मज्ञ, कलाधर जैसे कई नामचीन साहित्यकार इस चौपाल में शिरकत कर चुके हैं।
हंस के संपादक राजेंद्र यादव ने एक पत्र में इस चौपाल की जमकर प्रशंसा की थी इस हर शनिवार व रविवार की शाम निर्धारित समय पर औसतन दो दर्जन साहित्यकारों का जुटान होता है। उनके बैठने आदि का इंतजाम खुद अपनी इच्छा से राम रक्षा चौधरी ही करते हैं।
नवोदित साहित्यकारों को प्रोत्साहित करना मुख्य मकसद
इलाके के नवोदित साहित्यकारों को प्रोत्साहित करना, उनकी लेखनी में मौजूद कमियों को दूर करना इस चौपाल का मुख्य मकसद है। इस चौपाल की अघोषित कमान वरिष्ठ साहित्यकारों के जिम्मे होती है।
उनका यह दायित्व होता है कि नवोदित साहित्यकारों की सकारात्मक आलोचना करना व फिर उन्हें बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करना है। मूल रुप से रेणु की माटी पर साहित्य की धारा को सतत संजीवनी प्रदान करने की यह सामूहिक कोशिश है।
रेणु व प्रेमचंद की रचनाओं काे पवित्र ग्रंथ से कम नहीं मानते चौधरी
सन 1986 में स्नातक तक की पढ़ाई करने वाले चाय दुकानदार राम रक्षा चौधरी बताते हैं कि साहित्य से उनका लगाव पुराना है। आर्थिक विवशता में चाय की दुकान खोल ली। दुकान खोलने के बाद भी उन्होंने साहित्य पढ़ना बंद नहीं किया।
वे रेणु व प्रेमचंद्र जैसे महान लेखकों की रचना को पवित्र ग्रंथ से कम नहीं मानते हैं। बाद में चौक पर चलने वाले साहित्यकारों के चौपाल को देख उन्होंने इसे नया स्वरुप देने का विचार सभी के समक्ष रखा। उन्हें बस इतनी खुशी है कि वर्तमान स्थिति में भी वे साहित्य की कुछ सेवा तो कर पा रहे हैं।