डेढ़ दशक बाद फिर लौटेगा पत्ते की थाली और कटोरी का जमाना, लोगो को मिलेगा रोजगार
डेढ़ दशक बाद फिर लौटेगा पत्ते की थाली और कटोरी का जमाना, लोगो को मिलेगा रोजगार, जाने कैसे – डेढ़ दशक के बाद एक बार फिर पत्ते की थाली व कटोरी का जमाना लौट सकता है । बिहार में सिगल यूज प्लास्टिक और थर्मोकोल (प्लेट, कप, ग्लास, कांटा, चम्मच, कटोरी, पानी पाउच या बोतल, प्लास्टिक झंडे, बैनर) के विनिर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, विक्रय, परिवहन व उपयोग पर बैन लगने के बाद यह उम्मीद जताया जा रहा है की एक बार फिर से हमें पत्ते की थाली में खाना खाने को मिल सकता है ।
डेढ़ दशक बाद फिर लौटेगा पत्ते की थाली और कटोरी का जमाना
अभी तक बाजार पर 85 प्रतिशत प्लास्टिक व थर्मोकोल की थाली का कब्जा था। सिंगल यूज प्लास्टिक और थर्मोकोल पर रोक के बाद अब लोगों के पास भोज में पत्ते, पेपर व बायोडिग्रेबल थाली के विकल्प हैं। इस क्षेत्र में अब रोजगार बढ़ने की संभावना भी बन गई है। उम्मीद जताई जा रही है की इस प्रचलन के वापस आ जाने से हजारों लोगो के लिए रोजगार के अवसर खुलेंगे। चलिए जानते हैं कैसे ।
![leaf plates](https://ararianews.com/wp-content/uploads/2021/12/leaf-plates.jpg)
थर्मोकोल प्रोडक्ट के बैन के बाद प्रयोग का अच्छा विकल्प
थाली व कटोरी विक्रेताओं की माने तो डेढ़ दशक पहले पत्ते की थाली व कटोरी ही ज्यादा बिकती थी लेकिन कम कीमत के कारण प्लास्टिक व थर्मोकोल की थाली बाजार पर हावी हो गई। सबसे बड़ी बात यह थी इसमें किसी तरह का परेशानी नहीं होती थी। जबकि पत्ते की थाली व कटोरी में छेद निकल जाया करते थे । पत्ते की थाली की कीमत डेढ़ से दो रुपये, कटोरी 70 से 75 पैसा जबकि थर्मोकोल की थाली एक रुपये व कटोरी 30 से 35 पैसा पड़ता है। यही कारन था की लोग इसे ज्यादा वरीयता देने लगे थे और पत्ते से बने थाली का प्रचलन ख़त्म होने के कगार पर आ गया था ।
लोगों को मिलेगा रोजगार
आर्थिक मामले के जानकार सीए प्रदीप कुमार झुनझुनवाला ने का कहना है कि सरकार के नये आदेश के बाद बांका, जमुई, मुंगेर में कई कुटीर उद्योग खुल जायेंगे। जिसमें दस हजार से अधिक लोग पत्ता तोड़ने, इसे बनाने में जुटकर रोजगार पा सकते हैं। इस क्षेत्र में जंगल होने के कारण इस उद्योग में अपार संभावना है।
![banana leaf plates](https://ararianews.com/wp-content/uploads/2021/12/banana-leaf-plates.jpg)
साथ ही उन्होंने यह भी कहा की राज्य में केला का उत्पादन काफी होता है। अभी तक इसके पत्ते को फेंक दिया जाता है। जबकि दक्षिण भारत में केले के पत्ते (banana leaf plates) की थाली, प्लेट के उपयोग का प्रचलन अधिक है। बिहार सरकार को इसे उपयोग में लाना चाहिए और इसे बढ़ावा देना चाहिए। इससे युवाओं को रोजगार भी मिलेगा और केले के पत्ते को इधर-उधर फेंकना नहीं पड़ेगा, इन पत्तो के उपयोग के बाद इसे मवेशी भी खा सकते हैं । हिंदू शास्त्रों में केले के पत्ते में खाने को शुद्ध माना जाता है।