चीन के 17 विश्विद्यालयों में पढाई जा रही हिंदी, गाँव में जाकर पढ़ा रहे बिहार के डॉ. विवेक

चीन के 17 विश्विद्यालयों में पढाई जा रही हिंदी, गाँव में जाकर पढ़ा रहे बिहार के डॉ. विवेक

हिंदी जब भाषा से आगे संस्कृति और संस्कार के रूप में अंगीकृत हुई तो वैश्विक फलक पर मान और सम्मान मिला। यह साहित्य और रचनाओं से निकलकर आम व्यवहार में दिख रही है। पश्चिम चंपारण के डा. विवेक मणि त्रिपाठी जैसे भाषाविद् चीन सहित अन्य देशों में हिंदी का कीर्ति पताका लहरा रहे हैं। वे शब्दों के संस्कार से संस्कृति का प्रवाह कर रहे हैं। विश्‍वविद्यालय में अध्‍यापन से अवसर निकाल कर चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में जा रहे और वहां लोगों को हिंदी पढ़ा रहे।

उनके जैसे हिंदी सेवियों के प्रयास का प्रतिफल है कि आज चीन के 17 विश्‍वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही, जबकि वर्ष 2000 तक वहां मात्र एक विश्‍वविद्यालय में हिंदी की पढ़ाई होती थी। डा. विवेक के निर्देशन में 30 से अधिक चीनी विद्यार्थियों ने हिंदी भाषा में अपना शोध पूरा किया है।

चीन में पिछले सात वर्ष से हिंदी के प्रचार-प्रसार में लगे है डा. विवेक मणि

इसमें भारतीय संस्कृति, हिंदू धर्म में पर्यावरण संरक्षण, हिंदू त्योहारों की विशेषता, भारत-चीन मैत्री संबंध सहित अन्य विषय रहे हैं। वर्ष 2018 तथा 2021 में विश्वविद्यालय उन्हें उत्कृष्ट अंतर राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित कर चुका है।

बगहा-एक प्रखंड के बांसगांव मंझरिया निवासी संस्कृत के सेवानिवृत्त प्रो. अखिलेश्वर त्रिपाठी के पुत्र डा. विवेक मणि चीन में पिछले सात वर्ष से हिंदी के प्रचार-प्रसार में लगे हैं। वे क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं। विश्वविद्यालय में हिंदी की शिक्षा देने के साथ चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर लोगों को हिंदी भी सिखाते हैं।

इसके अलावा वैश्विक स्तर पर भी वे हिंदी के विस्तार के लिए काम कर रहे हैं। इसी के तहत आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने उन्हें 17 जनवरी से 10 मार्च तक हिंदी पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया है। वे हिंदी यूनिवर्स फाउंडेशन, नीदरलैंड और वैश्विक संस्कृत मंच, नई दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय संयोजक भी हैं। दोनों संस्थाएं वैश्विक मंच पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए काम करती हैं।

भारतीय संस्कृति के बारे में जानना-पढ़ना चाहते हैं चीनी विद्यार्थी

डा. विवेक बताते हैं कि वर्ष 2011 में चीन सरकार की छात्रवृत्ति पर चीन के शेनयांग शिक्षण विश्वविद्यालय में चीनी भाषा और साहित्य पर शोध करने गया था। तीन साल पढ़ने के बाद वर्ष 2014 में वापस भारत आ गए।

इसके बाद गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय में चीनी भाषा और साहित्य पढ़ाने लगे। हालांकि, उनके मन में विदेश में हिंदी के प्रचार-प्रसार की ललक थी। वर्ष 2015 में वापस चीन चले गए।

वहां क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय से जुड़ गए। उनका कहना है कि चीनी विद्यार्थी भारतीय संस्कृति के बारे में जानना-पढ़ना चाहते हैं। बहुत से चीनी विद्यार्थी अध्ययन के बाद भारत में उच्च शिक्षा एवं नौकरी करने आते हैं।

इन सबमें हिंदी सहायक बन रही है। अभी चीन के 15 विश्वविद्यालयों में ‘भारत अध्ययन केंद्र’ हैं, जहां भारतीय संस्कृति पर शोध हो रहा है। 50 से अधिक विश्वविद्यालयों में ‘बौद्ध अध्ययन विभाग’ है।

भारतीय साहित्य का मंदारिन भाषा में अनुवाद

  • डा. विवेक मणि बताते हैं कि चीन में हिंदी की स्थिति अच्छी है। वर्ष 1942 में वहां हिंदी भाषा की पढ़ाई शुरू हुई थी। वर्ष 2000 तक केवल एक ही विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा पाठ्यक्रम में थी।
  • अब 17 विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम के रूप में शामिल है। वर्तमान में भारतीय संस्कृति को समझने के लिए चीनी विद्वान भारतीय साहित्य का चीनी भाषा (मंदारिन) में अनुवाद कर रहे हैं।
  • अभिज्ञानशाकुंतलम्, विक्रमोर्वशीयम्, वाल्मीकि रामायण, महाभारत, मनुस्मृति, मैला आंचल, निर्मला सहित अन्य का चीनी भाषा में अनुवाद किया गया है।
new batch for bpsc 68th mains
प्रमोटेड कंटेंट

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *