गले में बिहार सरकार का आईडी कार्ड लटकाए मनरेगा कर्मी शैलेन्द्र चला रहे हैं ई-रिक्शा, जानिए क्या है वजह
बिहार में वैसे तो हर तरफ रोजगार की ही बात हो रही है। इसपर सियासत भी जोरो पर है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। नौकरियों की भरमार है और उसके अलग अलग प्रकार भी है। सायद यही कारण है कि कर्मियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसा ही एक शख्स पूर्णिया में है, जिसका मनरेगा की नौकरी से घर नहीं चल प् रहा था तो उसने पत्नी के के गहने बेच डाले। इसके बाद ई-रिक्शा खरीदा और उस पर लिखवाया, ‘मनरेगा कर्मी टोटो वाला, संविदा कर्मी टोटो वाला…!
15 वर्षो से पंचायत रोजगार सेवक के पद पर कार्यरत
गले में बिहार सरकार की आईडी डाले शैलेंद्र कुमार ने बताया कि वह विगत 15 वर्षों से बिहार सरकार के (PRS) पंचायत रोजगार सेवक के पद पर कार्यरत हैं। उसकी बहाली मनरेगा योजना की शुरुआती दौर में संविदा के तौर पर हुई थी।
उन्होंने बताया कि बिहार सरकार के द्वारा मनरेगा व संविदा कर्मियों को उतनी तनख्वाह नहीं दी जाती, जिससे उसका गुजारा हो सके। शैलेंद्र कुमार के मुताबिक, परिवार को पालने में भी काफी दिक्कते आती है।
परिवार चलाना हुआ मुश्किल
शैलेंद्र कुमार कहते हैं कि ऐसे में परिवार चलना मुश्किल हुए तो पत्नी के गहने बेचकर टोटो (E-Rikshaw) निकाला। वह ड्यूटी से पहले और ड्यूटी से आने के बाद ई-रिक्शा चलाते हैं।
टोटो चलाने से उसे 700 रुपए तक प्रतिदिन मिल जाते हैं जिससे परिवार आसानी से चल जाता है। बिहार सरकार से गुहार लगाते हुए उन्होंने कहा कि मनरेगा कर्मी व संविदा कर्मियों के लिए जल्द से जल्द कुछ सोचा जाए नहीं तो इसी तरह सभी संविदा कर्मियों को टोटो चलाने पड़ सकता है।
500 से 700 रुपए तक हो जाती है इनकम
शैलेंद्र द्वारा चलाये जा रहे रिक्शा से रोजाना 500 से 700 रुपए तक इनकम हो जाती है। इससे परिवार और बच्चे काफी खुश हैं। भावुक होते हुए शैलेंद्र कुमार बताते हैं कि बिहार में ही मनरेगा कर्मियों की यह स्थिति है लेकिन अन्य राज्यों में इन्हे अच्छा सैलरी दिया जाता है।
ऐसे में वे सरकार से मांग करते हैं कि कि कम से कम संविदा कर्मियों पर भी दूसरे राज्यों के सरकार की तरह ध्यान दिया जाये ताकि किसी अन्य को पत्नी के गहने बेचकर ई रिक्शा चलाने की मजबूरी ना हो।