बिहार के गया के तिलकुट के कायल हैं लोग, विदेशों में बढ़ रही है मांग, जानिए इतिहास
बिहार में वैसे तो कई ऐसे मिष्टान हैं जिसके लिए देश विदेशों से बड़े पैमाने में आर्डर आते हैं। ऐसे में बिहार के जिले गया भी अपने आप में तिलकुट के लिए मशहूर है। जानिए खासियत।
सर्दियों से पहले यहां गलियों से आपको तिलकुट की महक मिलने लगती है। मकर संक्रांति के दिन आम तौर पर लोगों के भोजन में चूड़ा-दही और तिलकुट शामिल होता है।
![गया के तिलकुट की महक](https://ararianews.com/wp-content/uploads/2022/12/smell-of-tilkut-of-gaya.jpg)
गया के प्रमुख मिष्ठान के रूप में विख्यात
तिलकुट खाने की परम्परा से तो आप सभी वाकिफ होंगे। तिलकुट को गया के प्रमुख मिष्ठान के रूप में देश-विदेश में जाना जाता है। गया का तिलकुट बिहार और झारखंड में ही नहीं पूरे देश में प्रसिद्ध है।
मकर संक्रांति के से पहले से ही गया की गलियों में तिलकुट की सोंधी महक और तिल कूटने की धम-धम की आवाज लोगों के जेहन में मकर संक्रांति के आगमन का संदेश देती है।
तिलकुट निर्माण का व्यवसाय काफी प्राचीन
गया मे तिलकुट के निर्माण का यह व्यवसाय काफी प्राचीन समय से चला आ रहा है। तिलकुट बनाने के इतिहास को गया की धरती से ही जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन तिल की वस्तु दान देना और खाने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
गया में हाथ से कूटे जाने वाले तिलकुट काफी प्रसिद्द है। इसमें खास्ता होते हैं, साथ ही खाने में भी इसका स्वाद दूसरे जगहों की तुलना में स्वादिष्ट और सोंधा होता है। गया का रमना रोड तिलकुट निर्माण के लिए प्रारंभ से प्रसिद्ध है।
200 से 250 घरों में होता है तिलकुट का निर्माण
गया में कम से कम 200 से 250 घरों में तिलकुट कूटने का व्यवसाय चल रहा है। खस्ता तिलकुट के लिए प्रसिद्ध गया का तिलकुट झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में निर्यात होता है। विदेश में भी इसकी डिमांड काफी है।
अन्य देशों से बोधगया आने वाले पर्यटक अपने साथ तिलकुट जरूर लेकर जाते हैं।
डिमांड को देखते हुए अब गया में सालों भर तिलकुट कूटने का काम चलता है। यहाँ के प्रति कारीगरों के द्वारा रोजाना 20-25 किलो तिलकुट कूटा जाता है।
जानिए बनाने की विधि
इसे बनाने की विधि भी काफी खास है। सबसे पहले चीनी और पानी को कढ़ाई में रखकर गर्म किया जाता है। फिर इसकी घानी तैयार होती है। इसके बाद चीनी के घोल को चिकने पत्थर पर रखा जाता है।
ठंडा हो जाने के बाद इसे पट्टी पर चढ़ाया जाता है। पट्टी पर चढ़ाने के बाद इसे तिल के साथ गरम कड़ाही में भूना जाता है, भुनाने के बाद छोटे छोटे लोई बनाकर इसे हाथों से कूटा जाता है। तिलकुट कूटने के बाद उसे सूखने के लिए रखा जाता है ताकि वह खास्ता बन सके। आपने भी कभी इसे टेस्ट किया है तो जरूर कमेंट करें।
![new batch for bpsc 68th mains](https://ararianews.com/wp-content/uploads/2022/12/new-batch-for-bpsc-68th-mains.jpg)