बिहार के एक गांव में छठ घाट पर बनाई गई एक जैसी 462 आकृति, जानिए वजह
लोक आस्था का महापर्व छठ सामाजिक सौहार्द और सद्भाव का पर्व माना जाता है। यह बिहार का लोकप्रिय पर्व है और इसकी धूम देश भर में देखने को मिलती है। छठ पूजा के दौरान घाट पर ऊंच-नीच, अमीर-गरीब, बड़े-छोटे का फर्क मिट जाता है।
बिहार के सीवान जिले के सिसवन प्रखंड के कचनार गांव में छठ घाट पर एक साथ बने 462 छोटे-छोटे आकृति अपने आप में कुछ खास है। यह समाज को एकता और समानता का संदेश देता है।
एक जैसी दिखने वाली 462 आकृति
इन आकृतियों को भले ही अलग-अलग लोगों ने बनवाए हों, लेकिन यह सभी आकृति देखने में एक जैसे लगते हैं और एक ही साइज के हैं। दरअसल, यह छठ माता का सिरसोता है, जिसे इस इलाके में आम बोलचाल की भाषा में छठ माता की प्रतिमा कहते हैं।
यह आकृति इसलिए भी खास है क्योकि इसे अलग अलग लोगों द्वारा बनवाया गया है लेकिन फिर भी इसमें असमानता नहीं दिखती। देखने में सभी एक सामान लगते हैं।
बने हर आकृति का एक रंग और एक आकार है।
आपसी सामंजस्य स्थापित करना उद्देश्य
जिस तरह से छठ घाट पर अमीरी-गरीबी का फर्क नहीं होता है, उसी तरह से इन सिरसोता को बनवाने में भी अमीरी-गरीबी के फर्क को मिटाया गया है। यह परंपरा 70 वर्षों से चली आ रही है।
सिरसोता बनाने की परंपरा सीवान जिले के अलावा कई गांवों में है, लेकिन उन गांवों में न तो इसकी संख्या इतनी ज्यादा है, और न ही सभी एक समान हैं। कचनार ऐसा गांव है जहां घाट पर बने सभी 462 सिरसोता एक लाइन में स्थापित हैं।
धूमधाम से मनाया जाता है पर्व
दरअसल यहां पर कार्तिक और चैती छठ दोनों ही बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष भी इसे उतने ही उत्साह से मनाने की तैयारी हो रही है। छठ पूजा से एक सप्ताह पहले गांव का माहौल भक्तिमय हो जाता है।
सभी ग्रामीण आपसी सहयोग से मंदिरों की सफाई करते हैं। साफ-सफाई के बाद छठ माता के सभी सिरसौता को एक रंग में रंगा जाता है। छठ के दिन सिरसोता की पूजा करती हैं व्रती महिलाएं छठ पूजा के दिन कचनार गांव की व्रती महिलाएं 462 सिरसोता पर दो से तीन की संख्या में शमिल होकर एक साथ पूजा-अर्चना करती हैं।
मन्नत पूरी होने के साथ साथ बढ़ रही है संख्या
इस गांव के निवासी बताते हैं कि सीवान, छपरा और गोपालगंज जिले में सबसे अधिक भीड़ छठ पूजा में यहीं होती है। एक आकर में बने सिरसोता का मुख्य उद्देश्य सभी में सामंजस्य स्थापित करना है। यहाँ के लोगो की मन्नत पूरी होने के बाद वे स्वेक्षा से 10-10 की संख्या में छठ सिरसोता बनाते हैं।