बिहार का ऐसा गाँव जहाँ के सिर्फ 2 लड़के ही मेट्रिक पास, अब यहाँ की बेटियां रचेंगी इतिहास
21वीं सदी में यदि आपको कोई कहे कि तकरीबन 1 हजार की आबादी वाले गांव में सिर्फ 2 लड़के ही मैट्रिक पास हैं तो क्या आप इस बात पर यकीन करेंगे? आपको विश्वास हो या न हो लेकिन यह सच है। महादलित बहुल इस गांव के अधिकांश लोग ईंट-भट्ठों पर काम करते हैं। इस गांव के लोगों को शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है।
यही वजह है कि इस गांव में सिर्फ 2 लड़के ही मैट्रिक पास हैं। बेटियां या बहुओं के पढ़ने-लिखने की तो कल्पना ही नहीं की जा सकती है। लेकिन अब इस गांव की तस्वीर भी बदलने लगी है. बेटियां शिक्षा की मशाल जलाने लगी हैं। जिले के बरहट प्रखंड इलाके के पत्नेश्वर पहाड़ी की तलहटी में बसा गांव महादलित बहुल है। गांव की आबादी लगभग 1000 है। शिक्षा के मामले में यह गांव बहुत पीछे है।

अब तक मात्र 2 लड़के ही मैट्रिक पास
आजादी के 7 दशक बाद भी इस गांव के लोग अब तक शिक्षा से दूर हैं। गरीबी के कारण पेट पालने और घर संभालने के लिए ग्रामीण ईंट-भट्ठों पर या कहीं और मजदूरी करते आ रहे हैं। पत्नेश्वर गांव में अब तक मात्र 2 लड़के ही मैट्रिक पास हैं। जबकि यहां की बेटी या बहू पढ़ी लिखी नहीं हैं, लेकिन अब इस गांव में भी शिक्षा की अलख जलने लगी है।

अगले साल (वर्ष 2023) यहां की 4 बेटियां मैट्रिक की परीक्षा देंगी। ये चारों अभी से ही जीतोड़ मेहनत कर रही हैं। ये सभी मलयपुर गांव के कामिनी गर्ल्स स्कूल की छात्रा हैं। इस गांव की बेटी मुस्कान, मुरा, कुन्नी और तिरो सरकारी स्कूल में पढ़ती हैं और हुए पढ़ लिखकर आगे बढने की ठान ली है। इसी का नतीजा है कि परिवार वाले भी इनका साथ देने लगे हैं।
4 लड़कियों का शिक्षा के प्रति ललक का असर
मां-पिता के साथ मजदूरी करने वाली मुरा पढ़ लिखकर टीचर बनना चाहती हैं, जबकि मुस्कान की चाहत कलेक्टर बनने की है। इन 4 लड़कियों का शिक्षा के प्रति ललक का असर गांव के बाकी बच्चों पर भी पड़ रहा है।

यही कारण है कि ईंट-भट्ठा पर काम करने वाली हीना भी इन लोगो के साथ पढाई करने लगी है। इन चार लड़कियों को पढ़ते देख ईंट-भट्ठे पर काम करने वाली हीना पढ़ने के लिए इन लोगों के साथ रहती है।
काजल और निशा बच्चों को देती हैं मुफ्त कोचिंग
पत्नेश्वर गांव के मजदूर परिवार के बच्चे अब तक पढाई नहीं कर पाते थे। शिक्षा को लेकर जागरुकता के अभाव में स्कूल में नाम लिखवाने के बाद भी कई बार डॉप आउट हो जाते थे। खासकर लडकियां प्राय: ही स्कूल छोड़ देती थीं। महादलित समाज में शिक्षा को बढावा देने के लिए 2 युवती काजल और निशा की पहल रंग लाई।
ये दोनों गांव में बच्चों को मुफ्त में कोचिंग देती हैं। इन्हीं के प्रयास का नतीजा है कि यहां के लड़के-लड़कियां अब पढने लगी हैं। अब मजदूर मां-बाप भी चाहता है कि उनके बच्चे पढ़ें और आगे बढ़ें। जाहिर तौर पर गांव की 4 बेटियों को देख बाकी लोग भी अब शिक्षा से जुड़कर दशकों से चले आ रहे पिछड़ापन को दूर करने में जुट गए हैं।
अन्य बच्चे भी शिक्षा के प्रति जागरूक
काजल और निशा बताती हैं कि पहले इन बच्चों का स्कूल में नाम था, लेकिन पढ़ने नहीं जाते थे। उनके मां-बाप को समझाया बुझाया गया। अब यहां के लोग मजदूरी करने जाते तो हैं, लेकिन अपने बच्चे को लेकर नहीं जाते हैं।
परीक्षा की तैयारी में जुटी मुस्कान की मां रिंकू देवी ने बताया कि इस गांव में उनकी बेटी पहली ऐसी लड़की है जिसने स्कूल जाना शुरू किया। उसे देखकर गांव के अन्य बच्चे भी शिक्षा के प्रति जागरूक होने लगे हैं।
