बेहद कम जगह में मशरूम उगाकर लाखों कमा रहे हैं बिहार के राजकुमार, न्यूज देखकर आया आइडिया
कम संसाधन में अच्छा मुनाफा आज के किसानों का सपना बन गया है। पारम्परिक खेती से ज्यादा किसान कुछ नया प्रयास करने में लगे हैं। इसमें वे सफल भी हो रहे हैं।
पूर्णिया के डगरूआ प्रखंड के किसान राजकुमार यादव बहुत कम जगह में मशरूम उत्पादन से हर महीने लाखों कमा रहे हैं। प्रखंड के चापी पंचायत में मशरूम उत्पादन करने वाले इकलौते किसान राजकुमार यादव ने बताया कि न्यूज़ देखकर उन्हें मशरूम उत्पादन करने का आईडिया आया।
न्यूज़ के माध्यम से मशरूम उत्पादन का आइडिया
वे बताते हैं की पहले मशरूम उत्पादन करने के बारे में सोचा था, लेकिन साधन और संसाधन की जानकारी नहीं थी लेकिन बाद में न्यूज़ के माध्यम से मशरूम उत्पादन का आइडिया और तरीका समझ में आया।
इसके बाद क्या था, उन्होंने पूर्णिया के कृषि विज्ञान केंद्र जलालगढ़ में जाकर संपर्क किया। उन्हें साधन और संसाधनों की सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराइ गई। कुछ दिन के बाद कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा मशरूम बीज भी दिया गया। वे विगत पांच वर्षों से इस खेती में लगे हैं।
प्रति पैकेट 160 रुपये तक का मुनाफा
अभी वह 20X30 यानी 600 स्क्वायर फीट में मशरूम उत्पादन कर रहे हैं। 1 पैकेट में न्यूनतम 1 किलो और अधिकतम 2 किलो तक उत्पादन होता है। वह करीब 500 पैकेट उत्पादन कर रहे हैं।
वे बताते हैं कि थैले में मशरूम लगाने में 40 रुपये लागत आती है, तो वहीं 200 तक फायदा होता है। अगर लागत को काट लिया जाए तो फिर भी एक पैकेट से करीब 160 रुपये का मुनाफा है।
कम संसाधन में होती है मशरूम की खेती
राजकुमार अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि मशरूम उत्पादन करने के लिए ज्यादा चीज़ों की ज़रूरत नहीं पड़ती। घरों के गेहूं का पुराना भूसा और बंद कमरे सहित अन्य छोटी-मोटी चीज़ों की ज़रूरत होती है।
इसमें मशरूम का बीज डालकर मॉइस्चर के लिए तैयार करना होता है। नमी जमने के 25 दिन बाद मशरूम फलना शुरू हो जाता है। मशरूम के वज़न और पत्तों में खुशबू से यह पता लगाया जा सकता है की वह तैयार है। अब इसकी कटाई के दो चार दिन बाद उसे खाया जा सकता है।
पूर्णिया के निकटवर्ती ज़िलों और अन्य नज़दीकी बाज़ारों में वह मशरूम बिक्री करते हैं। अपनी गाड़ी से भी लोगों को घर-घर तक मशरूम डिलीवर करते हैं।