savitri devi son manoj kumar became sdo at the same office

जिस ऑफिस में माँ लगाती थी झाड़ू, वहीँ बेटा बना अफसर, पढ़िए बिहार के इस एसडीओ की कहानी

बिहार के इस अफसर की कहानी हर किसी को प्रेरणा देने वाली है। दरअसल जिस दफ्तर में वो अपना पद और जिम्‍मेदारी संभाल रहे है, उनकी माँ का वहां से पुराना नाता रहा है। बिहार के जहानाबाद के एसडीओ मनोज कुमार की मां अनुमंडल कार्यालय में चतुर्थवर्गीय कर्मी की नौकरी कर चुकी हैं। आईये जानते है उनकी इस प्रेरणादायक कहानी के बारे में। 

तपस्या सही हो तो फल निश्चय ही मिलता है। जिस कार्यालय में मां कभी झाड़ू लगाया करती थीं, वहीं उनका सुपुत्र आज अफसर बनकर उनकी तपस्या को फलीभूत कर रहा है। अरवल जिले के अबगिला की सावित्री देवी का जीवन संघर्षों से भरा रहा है।

नौकरी लगने से पहले गांव में किराना दुकान चलाकर परिवार का भरण-पोषण करती थीं। पति रामबाबू प्रसाद खेती-किसानी करते थे। किसी तरह घर-परिवार चल रहा था। इस बीच 1990 में चतुर्थवर्गीय कर्मी की वेकेंसी निकली।

पटना सचिवालय से हुई थीं रिटायर

आठवीं पास सावित्री देवी ने नौकरी के लिए आवेदन किया। सावित्री देवी को सरकारी नौकरी मिल गई। नौकरी भले ही चपरासी की थी, लेकिन इस सामान्य परिवार के लिए यह बड़ी उपलब्धि थी। जिस समय मां को नौकरी मिली मनोज कुमार मैट्रिक में पढ़ रहे थे।

नौकरी के बाद उनकी पढ़ाई का खर्च भी बेहतर तरीके से निकलने लगा। सावित्री की पहली पोस्‍ट‍िंग पटना सचिवालय में हुई। इसके बाद गया और 2003 में जहानाबाद आईं। यहां से 2006 में फिर पटना सचिवालय चली गईं। वहीं से 2009 में सेवानिवृत्त हुईं।

मनोज कुमार देते हैं मां को श्रेय

अनुमंडल पदाधिकारी मनोज कुमार बताते हैं कि हम लोगों का परिवार पूरी तरह खेती-किसानी पर निर्भर था। जब कभी मां से मिलने अनुमंडल कार्यालय जाता तब इच्छा होती थी कि मैं पढ़-लिखकर बड़े साहब की कुर्सी पर बैठूं। मां इसके लिए हमेशा प्रेरित करती थीं। इसका फल है कि उसी कार्यालय में आज मैं एसडीओ के पद पर कार्य कर रहा हूं।

ग्रामीण कार्य विभाग से शुरू की नौकरी

एसडीओ के रूप में मेरी पहली पोस्‍ट‍िंग जहानाबाद में ही हुई। इससे पहले पटना में ग्रामीण विकास विभाग में अधिकारी थे। वहीं से नौकरी की शुरुआत है। सावित्री देवी बताती हैं कि आज बेटे को देख गर्व की अनुभूति होती है। बेटा अनुमंडल पदाधिकारी है, लेकिन वह कुर्सी आज भी मेरे लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितनी पहले थी।

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