बिहार: बक्सर के किसान ताइवानी पपीते और ऑस्ट्रेलियन सरसों की खेती कर कमा रहे हैं लाखों
बिहार: बक्सर के किसान उपजा रहे हैं ताइवानी पपीते और ऑस्ट्रेलियन सरसों, सामान्य से चार होना ज्यादा उपज- बिहार में खेती के प्रति लोगो में पहले से ही रूचि रही है। आधुनिक बिहार के किसान कुछ नया नया प्रयास करने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं और ऐसे में उन्हें फायदा भी पहुंच रहा है। बिहार की खेती पहले के मुकाबले अब काफी समृद्ध हो गई है।
बक्सर के किसान उपजा रहे हैं ऑस्ट्रेलियन सरसों
अब बक्सर जिले में एक किसान ताइवानी पपीते और ऑस्ट्रेलियन सरसों की खेती कर लाखों रुपए कमा रहे हैं। बिहार के किसान अलग-अलग देशों की तकनीक का इस्तेमाल कर पैदावार कई गुना बढ़ा रहे हैं। इनसे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होने के साथ अन्य किसानों के भी हौसले बढ़ रहे हैं।
एक एकड़ में 3 से 5 क्किटल तक पैदावार
बक्सर में ऑस्ट्रेलियन बीजों से सरसो की पैदावार एक एकड़ में 3 से 5 क्किटल तक हो रही है। जिले के चौसा प्रखंड अंतर्गत चौसा गांव में यह खेती हो रही है। किसान अरुण सिंह कुशवाहा इन दिनो काफी चर्चा में हैं। पहले यह काला नामक चावल की खेती करके सुर्खियों में आए थे।
अरुण सिंह ऑस्ट्रेलियन सरसों की खेती करने वाले सूबे के पहले किसान बन गए हैं। इन्होंने अपनी पांच एकड़ जमीन पर ऑस्ट्रेलियन वेरायटी पी-45 किस्म की सरसों की फसल लगाई है। इसकी बुआई अक्टूबर और नवंबर महीने में की है। अरुण ने बताया कि अब फसल खड़ी हो गई है।
इसके अतिरिक्त अपनी नर्सरी में नाइवान के पपीते भी लगा रखे हैं। इन दोनों चीजों की खेती के लिए वह इंटरनेट का सहारा लेते हैं। वे बताते हैं की वह हर दिन कुछ नई जानकारी लेते हैं और उसका इस्तेमाल अपनी खेती में करते हैं।
यू-ट्यूब से अरुण ने लिया था प्रशिक्षण
उन्हें ऑस्ट्रेलियन सरसों की खेती करने की जानकारी यू-ट्यूब के जरिए मिली। यू-ट्यूब के द्वारा ही उन्होंने खेती करने का प्रशिक्षण लिया। प्रशिक्षण लेने के बाद फिर ऑनलाइन 960 रुपए किलो की दर से बीज मंगवाए। फिलहाल पांच एकड़ में फसल लगाई है, जो तैयार हो रही है।
अरुण के अनुसार ऑस्ट्रेलियन बीज में रोग रोधक क्षमता काफी अधिक है। इसकी वजह से इसकी फसल में बीमारी नहीं लगती है। बीमारी नहीं लगने के कारण चार से पांच गुना ज्यादा पैदावार होती है। किसानो की सबसे बड़ी परेशानी फसलों में बीमारी लग जाना है जिससे उनका काफी नुकसान होता है। ऑस्ट्रेलियन बीज द्वारा उपजे फसल का दाना काफी बड़ा होता है। इससे तेल निकलने की दर 46 प्रतिशत है। वहीँ बात करें यहाँ की फसल का तो फसल से तेल निकलने की दर 30 प्रतिशत की होती है।