जानिए चंपारण में मौजूद विशालकाय केसरिया स्तूप के बारे में, महात्मा बुद्ध के जीवन से है सम्बंधित
बिहार के पूर्वी चंपारण में मौजूद केसरिया स्तूप बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्रों में से एक है। प्राकृतिक सुंदरता स्तूप की सुंदरता पर चार चाँद लगाती है। इसे भारत का सबसे ऊंचा स्तूप माना जाता है। जानिए।
सायद आपको न पता हो, केसरिया स्तूप भारत का सबसे ऊंचा और सबसे लम्बी परिधि वाला स्तूप है। इसका निर्माण सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था। कार्बन डेटिंग से पता लगाया गया है की स्तूप ईसा से 200 वर्ष पहले बनाया गया था।

400 फीट की परिधि में फैला है स्तूप
स्तूप छोटी पहाड़ी पर स्थित है। स्तूप की ऊंचाई लगभग 100 फीट से ज्यादा है और स्तूप की परिधि लगभग 400 फीट है। बौद्ध धर्म के पर्यटक स्तूप पर पूजा करने आते हैं।
बिहार और नेपाल के पर्यटक केसरिया स्तूप घूमना काफी पसंद करते हैं। स्तूप के संदर्भ में महात्मा बुद्ध के जीवन से एक कहानी जुडी हुई है। जिसे आपको जानना चाहिए।
बुद्ध ने बिताया था अपना अंतिम समय
बौद्ध मतावलंबियों के अनुसार महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन के अंतिम का कुछ समय इसी पहाड़ी के किनारे गुजारे थे। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने इसी जगह अपने जीवन के अंतिम समय में भिक्षा के लिए उपयोग किये जाने वाले कटोरे को अपने अनुयायिओं को समर्पित कर दिया था।

सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने के बाद साम्राज्य के अलग अलग हिस्सों में बौद्ध प्रचार प्रसार पर काम किया जिसके दौरान स्तूपों का निर्माण भी कराया था। केसरिया स्तूप का निर्माण अशोक के शासनकाल में ही कराया गया था।
ईसा के जन्म से 200 साल पूर्व हुआ था निर्माण
कार्बन डेटिंग प्रणाली के अनुसार स्तूप का निर्माण लगभग ईसा के जन्म से 200 साल पहले कराया गया था। केसरिया स्तूप पुरे विश्व में बने स्तूपों में सबसे ऊंचा और सबसे बड़ा है।
इसके बनावट की बात करें तो स्तूप का निर्माण टीले पर किया गया था इसलिए इसकी धरातल से ऊंचाई 100 फीट से अधिक है। स्तूप कि परिधि लगभग 400 फीट की है। सम्राट अशोक या किसी अन्य शासक द्वारा बनवाए स्तूपों में केसरिया स्तूप सबसे बड़ा है।
स्तूप के संरक्षण का काम जारी
केसरिया स्तूप के संरक्षण को लेकर लगातार लोग प्रयास करते आ रहे हैं। पुरातत्व विभाग से भी संरक्षण की अपील की जा चुकी है। बीते कई सालों में स्तूप के कई हिस्से ढह रहे हैं। लोगों द्वारा संस्कृति मंत्रालय से संरक्षण की अपील की गई जिसके बाद स्तूप के संरक्षण का काम किया जा सकता है।
