कैसे हुई थी बिहार में सोनपुर मेले की शुरुआत, जानिए मेले से जुड़ी हुई रहस्मयी बातें
बिहार के सोनपुर में हर साल कार्तिक पूर्णिमा से लगनेवाला मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला हैं। मेले को ‘हरिहर क्षेत्र मेला’ के नाम से भी जाना जाता है जबकि स्थानीय लोग इसे छत्तर मेला कहते हैं। बिहार की राजधानी पटना से करीब 25 किमी और हाजीपुर से 3 किमी की दूरी पर सोनपुर में गंडक के तट पर लगने वाले इस मेले की वजह से भी अगर बिहार जाना जाता है, तो इसमें कोई अति नहीं होगी।
यूं तो इस मेले की पहचान पशु-पक्षियों की बि क्री के लिए जाना जाता है कि लेकिन साल 2003 में पशु-पक्षियों की खरीद-बि क्री पर लगी रोक के बाद इस मेले की स्वरूप बदलता चला गया। अब मेले की पहचान थियेटर के रूप में की जाने लगी है। लेकिन सोनपुर मेले में थियेटर शुरू होने के पीछे भी एक कहानी है।

ऐसा कहा जाता है कि इस पशु मेले में मध्य एशिया से कारोबारी आया करते थे। दूर-दूर से पशुओं की खरीदारी करने आये व्यापारियों के लिए रात में ठहरने का खास इंतजाम किया जाता है। व्यापारियों के मनोरंजन के लिए नाच-गान आदि की व्यवस्था की जाती है। बदलते समय के साथ इसी नाच-गान ने अब थियेटर का रूप ले लिया है।
दिलचस्प है सोनपुर मेले की पौराणिक कहानी
धर्म के जानकार बताते हैं कि भगवान विष्णु के दो द्वारपाल हुआ करते थे। दोनों भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। दोनों का नाम जय और विजय था। ब्रह्मा के मानस पुत्रों के द्वारा दिये गये श्राप के चलते दोनों धरती पर पैदा हुए।
जिनमें से एक ग्राह यानी मगरमच्छ बन गया और दूसरा गज यानी हाथी बन गया। एक दिन कोनहारा घाट पर जब हाथी पानी पीने आया तो, उसे मगरमच्छ ने मुंह में जकड़ लिया और दोनों में युद्ध शुरू हो गया।

ये युद्ध कई दिनों तक चलता रहा। और काफी मेहनत के बाद भी गज उससे छूट नहीं सका। दोनों की लड़ाई कई वर्षो तक चली। इसके बाद हाथी जब कमजोर पड़ने लगा तो उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। उसी समय भगवान विष्णु ने दर्शन चक्र छोड़ा और ग्राह की मौत हो गयी।
इसके बाद हाथी मगरमच्छ के जबड़े से मुक्त हो सका। भगवान की इस लीला को देखने के बाद सारे देवी-देवता उसी समय इस जगह पर प्रकट हुए। जिसके बाद भगवान ब्राह्मा ने यहां पर दो मूर्तियां लगायी। ये मूर्तियां भगवान शिव और विष्णु की थी। इस वजह से इसको हरिहर नाम दिया गया था।
यहां पशुओं की खरीदारी माना जाता है शुभ
धर्म के जानकार का कहना है कि चूंकि इस जगह पर दो जानवरों का युद्ध हुआ था और सारे देवी-देवता एक साथ यहां प्रकट हुए थे। इस वजह से यहां पशुओं की खरीदारी करना शुभ माना जाता है।
इसी स्थान पर हरिहर यानी विष्णु और शिव का मंदिर भी है, जहां प्रतिदिन सैकड़ों भक्त श्रद्धा से पहुंचते हैं। पूरे भारत में यह मात्र ऐसी जगह है जहां भगवान शिव और विष्णु की मूर्ति एक साथ रखी गई है। कहा जाता है की भगवान राम भी यहां आये थे और उन्होंने हरिहर की पूजा की थी।
पूरे देश में एकमात्र ऐसा शिवलिंग
बाबा हरिहर नाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग भी विश्व में अनूठा है। यह पूरे देश में एकमात्र ऐसा शिवलिंग है जिसके आधे भाग में शिव और शेष में विष्णु की आकृति है। मान्यता है कि इसकी स्थापना 14000 वर्ष पहले भगवान ब्रह्मा ने शैव और वैष्णव संप्रदाय को एक-दूसरे के नजदीक लाने के लिए की थी।
सोनपुर में शैव, वैष्णव और शाक्त संप्रदाय के लोग एक साथ कार्तिक पूर्णिमा का स्नान और जलाभिषेक करते हैं। देश-विदेश में ऐसे दूसरे किसी पैराणिक शिवलिंग का प्रमाण नहीं है, जिस पर जलाभिषेक और स्तुति से महादेव और भगवान विष्णु दोनों प्रसन्न होते हैं। गंगा-गंडक के तट पर स्नान और धुनी का महत्व कई पुराणों और श्रीमद्भागवत में बताया गया है।
सोनपुर मेला का ऐतिहासिक महत्व
सोनपुर मेला कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान के बाद शुरू होता है। एक समय इस पशु मेले में मध्य एशिया से कारोबारी आया करते थे और यह मेला जंगी हाथियों का सबसे बड़ा केंद्र था। मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य मुगल सम्राट अकबर और 1857 के गदर के नायक वीर कुंवर सिंह ने भी सोनपुर मेले से हाथियों की खरीद की थी।

सन 1803 में रॉबर्ट क्लाइव ने सोनपुर में घोड़े का बड़ा अस्तबल भी बनवाया था। इसके अलावा सिख धर्म के गुरु नानक देव के यहाँ आने का जिक्र धर्मों में मिलता है और भगवान बुद्ध भी यहां अपनी कुशीनगर की यात्रा के दौरान आये थे।
यहाँ सबकुछ अलग अंदाज में बिकता है
ऐतिहासिक गजग्राह युद्ध की भूमि सोनपुर में विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेला अब पशु मेला की जगह थियेटर मेला बनकर रह गया है। यह मेला अपने आप में बहुत खास है क्योंकि कई सारी अलग चीज लोगो को आकर्षित करती है।
दो दशक पहले हाजीपुर के कोनहारा घाट से सारण के पहलेजा घाट तक फैले सोनपुर मेला घूमने में पर्यटकों को तीन से चार दिन लग जाते थे। हर साल हजारों विदेश पर्यटक मेला देखने आते थे। कहा जाता है कि इस मेले में सबकुछ मिलता है।
