कोसी सीमांचल के कई रेल प्रोजेक्ट इस कारण से लटके, किसानों का भी नहीं हुआ 92 करोड़ का भुगतान
भूमि अधिग्रहण के चलते ही कोसी और सीमांचल की कई रेल परियोजनाएं लटकी पड़ी हैं। इन परियानाओं के पूरा होने पर इस इलाके का आर्थिक विकास के साथ-साथ कायाकल्प हो जाएगा। लोगों को आवागमन में सुविधा भी होगी। रेलवे ने भूमि-अधिग्रहण के लिए राशि उपलब्ध करा दी है।
बावजूद इसके, कहीं किसानों के विरोध तो कहीं कानूनी दांव-पेंच के चलते भूमि अधिग्रहण का काम पूरा नहीं हो पाया है। राज्य के भू-अर्जन निदेशक सुनील कुमार ने 6 सितंबर को भू-अर्जन पदाधिकारियों को पत्र लिखकर इस काम में तेजी लाने का निर्देश दिया है।

अररिया-गलगलिया के बीच नई रेल लाइन का निर्माण
जानकारी के अनुसार, अररिया से गलगलिया के बीच नई रेल लाइन का निर्माण होना है। यहां भू-अर्जन का काम लगभग पूरा हो चुका है। लेकिन कई लोगों को अबतक मुआवजे की राशि नहीं मिली है। ऐसे किसानों के बीच अविलंब राशि का वितरण किए जाने का निर्देश निदेशक ने दिया है।

किशनगंज जिले में 26 एकड़ भूमि चकबंदी से अच्छादित है। इस कारण भू-अर्जन का काम ठप पड़ा हुआ है। हालांकि, इस प्रक्रिया को पूरा करने का काम तेजी से किए जाने की बात कही गई है। इसके लिए विभाग के वरीय अधिकारियों ने एक महीने की समय-सीमा भी निर्धारित की है।
कई किसानों की जमीन के कागज ठीक नहीं
यही हाल, अररिया-सुपौल नई रेल लाइन का है। यहां 886.793 एकड़ भूमि का अर्जन किया जाना है। इसके लिए 237.647 करोड़ की राशि भू-अर्जन विभाग को रेलवे द्वारा उपलब्ध करा दी गई है।

किसानों के बीच 145.0 करोड़ रुपये का वितरण कर भी दिया गया है। अभी 92 करोड़ रुपये किसानों के बीच वितरित करने हैं। कई किसानों की जमीन के कागज ठीक नहीं है। इस कारण उन्हें मुआवजे की राशि नहीं दी जा सकी है।
इन रेल परियोजनाओं पर एक दशक पूर्व शुरू हुआ था काम
वहीं, मधेपुरा जिले में भी 38.35 एकड़ भूमि-अर्जन किया जाना है। 17 जून 2022 को इसकी अधिसूचना जारी की जा चुकी है। रेलवे ने 14.80 करोड़ रुपये भू-अर्जन विभाग को उपलब्ध करा दिए हैं। इस मामले में कार्रवाई तेज करने को कहा गया है।

मधेपुरा के भू-अर्जन पदाधिकारी अभिराम त्रिवेदी ने कहा, ‘कुमारखंड प्रखंड के चैनपुर पंचायत में भूमि अधिग्रहण किया जाना है। इसके लिए प्रक्रिया तेज कर दी गई है।’ बहरहाल, एक दशक पूर्व इन रेल परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ था। लेकिन अधिग्रहण का काम कछुए की चाल में चला, परिणाम स्वरूप परियोजना लागत दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली गई और अभी भी बढ़ ही रही है।
