बिहार के इस दिव्यांग ने खुद बदली अपनी जिंदगी, स्कूटी पर ही शुरू किया अपना कारोबार
सफलता के रास्ते में एक ही बाधा होती है, वह है खुद की नकारात्मक सोच। यदि सोच सकारात्मक हो तो एक न एक दिन मुकाम जरूर हासिल हो जाता है। भोजपुर जिले के एक दिव्यांग युवक ने इसे करके दिखा दिया। लोगों को सहारा बनाने के बजाय इस युवक ने खुद को इतना मजबूत कर लिया कि लोग अब मिसाल तक देने लगे हैं।
भोजपुर के कोइलवर प्रखंड अंतर्गत परेव गांव के रहने वाले दिव्यांग बंधन ने अपने स्कूटी से ही इडली बेचना शुरू कर दिया। खुद से शुरू किए गए रोजगार के बल पर अपने परिवार का भरण पोषण तो कर ही रहे हैं। साथ ही अच्छी जिंदगी भी गुजार रहे हैं।
दिव्यांग बंधन 4 साल से बेच रहे हैं स्कूटी पर इडली
न्यूज 18 लोकल के रिपोर्ट के अनुसार दिव्यांग बंधन ने बताया कि वो करीब 4 वर्षों से स्कूटी की मदद से इडली बेचकर लोगों की सोच बदल रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह अपने जीवन से हार चुके थे। परिवार चलाने का भी बोझ था। इसके बाद काफी सोचकर फैसला लिया कि अन्य दिव्यांगों की तरह ट्रेनों में भीख नहीं मांगेंगे।

इसलिए एक स्कूटी ली और अपना चलती फिरती इडली दुकान खोल दी। गांव-गांव घूमकर इडली बेचने लगे। उन्होंने बताया कि दिव्यांगों के प्रति लोगों को अब सोच बदलनी होगी और किसी की दिव्यांगता को अभिशाप के रूप में न देखें।
रोजाना कमा लेते हैं 500 से 800 रुपये
आपको बता दें कि दिव्यांग बंधन 4 साल से इडली बेच रहे हैं। इडली बेचकर परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह बचपन से ही दिव्यांग हैं और बमुश्किल सातवीं तक की पढ़ाई कर सके। इडली बेचकर रोजाना 500 से 800 रुपये तक कमा लेते हैं।
आगे की पढ़ाई भी करना चाहता थे पर मजबूरी ने आगे पढ़ने के इजाजत नहीं दी। घर में मां, पिताजी, छोटे भाई, पत्नी और एक बच्चा है। जिनके भरण पोषण का जिम्मा भी कंधों पर है। उन्होंने आगे बताया कि सरकार से मिलने वाली सहयोग राशि बहुत ही कम है। जिससे घर नहीं चल पाता था। जिसके बाद अपनी दुकान खोल ली।
दिव्यांगों को दया की नहीं सहयोग की आवश्यकता
दिव्यांग बंधन ने बताया कि सरकार से उसे तो कोई मदद नहीं मिली, परंतु सरकार से यही मांग है कि उन दिव्यांगों की मदद जरूर करे जो अपना खुद का व्यवसाय शुरू कर समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहते हैं।
दिव्यांग को दया की नहीं बल्कि सहयोग की आवश्यकता है। यदि समाज दिव्यांग के प्रति सकारात्मक सोच रखे तो वे अपने हीनता की ग्रंथि को दूर कर समाज में उत्कृष्ट स्थान हासिल कर सक्षम नागरिक बनने में समर्थ होंगे तथा समाज की उन्नति में बेहतर योगदान देंगे।
